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पद : मीरा - Coggle Diagram
पद :
मीरा
कवियत्रि का परिचय
जन्म १५०३
जोधपुर के चोकड़ी गांव।
पद की भाषा राजस्थानी, ब्रज और गुजराती भाषा का मिश्रण है।
१३ वर्ष में विवाह
महाराणा सांगा के कुवर भोजराज ।
हिंदी और गुजराती दोनो में कवयित्री।
मीरा के गुरु संत रैदास।
मीरा के पद पाठ प्रवेश ।
मीरा कठीन दुख से मुक्ति पाने के लिए घर परिवार छोड़कर वृंदावन चली जाती है।
इन पद में मीराबाई श्री कृष्ण के भक्तो के प्रति प्रेम
अपने श्री कृष्ण के प्रति भक्ति भाव का वर्णन किया है।
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कृष्ण के प्रेम में लीन हो जाती है।
पहले पद
इस पढ़ में श्री कृष्ण ने अपने भक्तो के सभी प्रकार के दुक को दूर किया है
द्रौपदी की इज्जत बचाने के लिए साड़ी के कपड़े को बढ़ाते चले गए।
भक्त प्रलाथ को बचाने के लिए नरसिंह का शरीर धारण किया।
राजा भगवान इंद्र के वाहन ऐरावत हाथी को महरमच से बचाया
मीरा श्री कृष्ण की चक्र करना चाहती है और उनके नजदीक रहना चाहती है।
श्री कृष्ण का दर्शन पाने के लिए भगीचा लगाएगी।
वृंदावन की गलियों में स्वामी की लीलाओं का तारीफ करना चाहती है।
मीरा श्री कृष्ण के रूप की तारीफ करती है ।
पीला वस्त्र पहना है, सिर पर मोर पंख का मुकुट है,गले पर वैजंथी माला डाला है।