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दुख का अधिकार (पोशाक का महत्त्व (पोशाक अनेक बंद दरवाजे खोल देती है **,…
दुख का अधिकार
पोशाक का महत्त्व
पोशाक अनेक बंद दरवाजे खोल देती है
**
पोशाक व्यक्ति का दर्जा तय करती है :
अचानक से अपने से निचले स्तर के लोगों के साथ झुक कर उनका दुख-दर्द जानने में पोशाक बाधा बन जाती है।
लेखक की पोशाक का तब बाधा बन जाना जब वह बुढ़िया का दुख जानना चाहता था
कहानीकार :यशपाल
बूढ़ी स्त्री का मुँह छिपाकर रोना
बुढ़िया के रोने के कारण कोई खरबूजे नहीं खरीद पा रहा था
लेखक की प्रतिक्रियाएँ
आसपास की दुकानों पर खड़े लोगों की बातों को सुनकर स्थिति समझना
लोग बुढ़िया को स्वार्थी और रोटी के लिए हर रिश्ता भूल जाने वाली कह रहे थे
ऐसे लोगों के लिए बेटा-बेटी खासम लुगाई सब रोटी का टुकड़ा है **
परचून के लाला जी बुढ़िया को दूसरे का धर्म भ्रष्ट करने वाला कहते हैं
क्योंकि बुढ़िया का जवान बेटा मरा था और उसके घर पर तेरह दिन का सूतक था
अगर कोई बुढ़िया से खरबूजे खरीदता तो उसका धर्म भ्रष्ट होता
बुढ़िया से उसके रोने का कारण जानने के लिए झुकने का असफल प्रयास
आस-पास की दुकानों पर पूछताछ करना
बुढ़िया का बेटा भगवाना शहर के पास कछियारी करके अपने परिवार का निर्वाह करता था
परसों सुबह जब वह खरबूजे चुनने गया तो उसे साँप ने डांस लिया
बुढ़िया ने घर की सारी बचत लगाकर ओझा की मदद से बेटे को बचाने का प्रयास किया पर भगवाना मर गया
घर की बाकी जमापुंजी भगवाना के अंतिम संस्कार में लग गयी
बेटे की मौत के कारण उसे अब कोई उधार भी नहीं देता
बुढ़िया अपना दिल पत्थर करके बाज़ार आयी है कि कुछ पैसे कमाकर अपनी बीमार बहू के लिए कुछ खाने को जुटासके
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अवधारणा प्रारूप: द्वारा - सीमा मिश्रा
*लेखक के मन में व्यथा