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बेरोजगारी एक समस्या - Coggle Diagram
बेरोजगारी एक समस्या
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देश की दिनों दिन बढ़ती हुई जनसंख्या, निर्धनता तथा हजारों वर्ष की गुलामी इस समस्या के बढ़ने में सहायक हुई है।
विदेशियों ने भारत के उद्योगों को समाप्त कर दिया था जिससे इंस देश में बेकारी फैलना स्वाभाविक ही था। जाति-पाँति के भेद-भाव ने भी बहुत से लोगों को वेकार कर दिया है।
ऊंची जाति के लोग बेकार रहना भले ही स्वीकार करें किन्तू छोटी-छोटी जातियों वाले रोजगार करना वे पसन्द नहीं करते हैं । छोटे-छोटे उद्योग ठप्प हो गये हैं ।
बड़ी-बड़ी मशीनों और कारखानों को तो इस समस्या का मूल कारण ही कह सकते हैं। बड़ी-बड़ी मशीनों ने जहाँ एक ओर उत्पादन बढ़ाया तथा श्रम की बचत की, वहीं दूसरी ओर हजारो भारतीयों को भूखों मरने के लिए विवश कर दिया है।
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“Men go on saving labour till thousands are without work and thrown on the open streets to die of starvation.”
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भारत की वर्तमान शिक्षा प्रणाली भी बेकारी की समस्या का एक प्रमुख कारण है। यह शिक्षा प्रणाली विदेशियों की देन है जिसका उद्देश्य क्लर्क बनाना था।
आज की शिक्षा नवयुवकों को आत्मनिर्भर न बनाकर उनमें श्रम के प्रति अवज्ञा और नौकरी की भावना पैदा करती है।
यही कारण है कि देश में जैसे-तैसे शिक्षा का प्रचार हो रहा है, बेकारी की समस्या और विकराल रूप धारण करती जा रही है।
नारी शिक्षा का प्रचार होने पर अब स्त्रियाँ भी नौकरी के लिए निकल पड़ी हैं। इससे समस्या और भी जटिल हो गयी है। आज के विद्यार्थी ब्यावहारिक ज्ञान से शून्य तथा परिश्रम करने में असमर्थ होकर समाज में प्रवेश करते हैं।
नौकरशाही भारत से चली गयी परन्तु नौकरशाही की भावना उत्पन्न करने वाली शिक्षा प्रणाली आज भी देश में विद्यमान है।
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“शिक्षे ! तुम्हारा नाश हो, जो नौकरी के हित बनी”
आज के शिक्षित नौजवान बड़ी-बड़ी उपाधियाँ लेकर काम दिलाऊ दफ्तरों के चक्कर काटते हैं या समाचार-पत्रों के ‘आवश्यकता’ कालम पर मक्खियों की तरह मँडराते दिखाई पड़ते हैं।
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इस जटिल समस्या को सुलझाने के लिए इसके कारणों को मिटाना होगा। सबसे पहले हमें इस बात पर ध्यान देना होगा कि मशीनों का बढ़ता हुआ प्रभाव किस प्रकार रोका जाये। मशीनों को होना चाहिए किन्तु मनुष्य का दास-उसे स्वामी नहीं बनना चाहिए।
कुटीर उद्योगों का विकास होना चाहिए। छोटे-छोटे उद्योग जैसे बान बंटना, टोकरी बनाना आदि विकसित हो। महात्मा गांधी के अनुसार सूत कातने, कपड़ा बुनने का काम यदि घर-घर में होने लगे तो उससे एक ओर तो बेकारी की समस्या हल होगी और उसके साथ ही दूसरी ओर गरीबी और भुखमरी की समस्या भी हल हो जायेगी।
इसके अतिरिक्त शिक्षा प्रणाली में सुधार करना होगा। शिक्षा केवल किताबी न होकर व्यावहारिक होता चाहिए। कालिजों में पढ़कर नवयुवक केवल क्लर्क होकर ही नहीं निकलने चाहिए बल्कि अच्छे दस्तकार, कलाकार तथा श्रेष्ठ किसान होकर निकलने चाहिए।
हमारा देश कृषि-प्रधान है किन्तु देश के पढ़े-लिखे लोग खेती से घृणा करते हैं। शिक्षा में कृषि और श्रम के प्रति आदर और महत्त्व की भावना पैदा करने की क्षमता होनी चाहिए।
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“उत्तम खेती मध्यम बान, निषिध चाकरी भीख-निदान “
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भटक रहे नवयुवक देश के, लिए उपाधियां भारी॥
काम नहीं, हो रहे निकम्मे, भारत के नर-नारी।
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हमे अपनी शिक्षण प्रणाली को रोजगार अनुकूलित बनाना होगा। व्यावसायिक शिक्षा को महत्व देने की आवश्यकता है। जो युवक स्वंग रोजगार करने की चाह रखते है उन्हें क़र्ज़ प्रदान करना सरकार की जिम्मेदारी होनी चाहिए। देश में कल -कारखानों और नए उद्योगों की स्थापना करनी होगी जहाँ बेहतर रोजगार के अवसर मिल सके। सबसे पहले भ्र्ष्टाचार जो पीढ़ियों दर चली आ रही समस्याएं है जिन पर पर रोक लगाना आवश्यक है युवाओं की उम्मीदों को सही दिशा में प्रोत्साहित करना होगा ताकि वह रोज़गार अवसर हेतु नविन विचारो को तय कर सके।
भारत में बेरोजगारी मिटाने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही है। आये दिन सरकार कई योजनाएं ले आयी है जैसे प्रधानमंत्री स्वरोजगार योजना और शिक्षित बेरोजगार लोन योजना जिनका हमे सोच समझकर उपयोग करने की ज़रूरत है। गरीबी की रेखा में जीने वाले लोगो की अशिक्षा को मिटाने की पुरज़ोर कोशिश करनी होगी।
बेरोजगारी एक गंभीर समस्या है। शिक्षा की कमी, रोजगार के अवसरों की कमी, कौशल की कमी, प्रदर्शन संबंधी मुद्दे और बढ़ती आबादी सहित कई कारक भारत में इस समस्या को बढ़ाने में अपना योगदान देते हैं। व्यग्तिगत प्रभावों के साथ-साथ पूरे समाज पर इस समस्या के नकारात्मक नतीजे देखे जा सकते हैं।बेरोजगारी की समस्या एक अभिशाप की तरह युवाओं के दिलों दिमाग को खोखला कर रही है। युवाओं के सामने सिर्फ यही सवाल है कि पढ़ाई के बाद नौकरी कैसे हासिल की जाए? इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (ILO)के अनुमान के मुताबिक भारत में 2018 की बेरोजगारी दर 3.5 प्रतिशत थी। भारत के लिए यह चिंता का विषय है। देश में 77% रोजगार असुरक्षित बने रहेंगे।
बेरोजगारी की इन समस्याओं के प्रति सरकार को और अधिक गंभीर होना चाहिए। शिक्षण प्रणाली में सुधार के संग पूरे देश को शिक्षित करना चाहिए ताकि कोई नागरिक रोजगार से वंचित न रहे। जनसंख्या वृद्धि की समस्याओं पर पूर्णविराम लगाने की आवश्यकता है। भारत की भीषण आबादी बेरोजगार को बढ़ावा देने में सहायक है। सरकार को नयी योजनाओं के साथ प्रशिक्षण केंद्र और शिक्षण व्यवस्था में बदलाव लाने की आवश्यकता है। नए विकास की नीतियों के साथ भारत को आगे बढ़ना है ताकि बेरोजगारी की इस समस्या को जड़ से मिटा सके।